हरि भजन के अलावा कोई सार नही -मुरलीधर जी महाराज
जोधपुर, राजस्थान से पधारे प्रख्यात रामकथा वाचक संत मुरलीधर जी महाराज ने कहा कि इस संसार मे हरि भजन के अतिरिक्त कोई सार नही है, यह सार किसी भजनानंदी संत का सानिध्य प्राप्त होने पर ही मिलता है।
वाराणसी । जोधपुर, राजस्थान से पधारे प्रख्यात रामकथा वाचक संत मुरलीधर जी महाराज ने कहा कि इस संसार मे हरि भजन के अतिरिक्त कोई सार नही है, यह सार किसी भजनानंदी संत का सानिध्य प्राप्त होने पर ही मिलता है। दुर्गाकुण्ड स्थित मणि मंदिर, धर्मसंघ के प्रांगण में धर्मसम्राट स्वामी करपात्री जी महाराज के 115 वें प्राकट्योत्सव के अवसर पर चल रही 27 दिवसीय राम कथा के तीसरे दिन सोमवार को श्रोताओं को कथा रसपान कराते हुए कथा व्यास मुरलीधर जी महाराज ने कहा कि कथा श्रवण करते समय अपने अंदर के अभिमान का त्याग कर देना चाहिए।
मस्तिष्क से कथा श्रवण करने वाले अथवा श्रवण कराने वाले दोनों ही लोभी होते है, जबतक अंतःकरण में लोभ है तब तक हृदय में प्रेम का वास नही होगा और बिना प्रेम के कथा को आत्मसात करना असंभव है। उन्होंने कहा कि जिस व्यक्ति के माता पिता जीवित है, वह सबसे भाग्यशाली व्यक्ति है। माता पिता परमात्मा के स्वरूप है और जो इस परमात्मा की आत्मा को दुखाता है वह इस सांसारिक भवसागर के मझधार में डूब जाता है। जो तन मन से इनकी सेवा करता है उसकी नाव संसार सागर से पार उतर जाती है।
मुरलीधर जी महाराज ने नर सेवा को नारायण सेवा बतलाते हुए कहा कि सभी मंदिर में इंसान द्वारा बनाई मूर्तियों के सामने नतमस्तक हो जाते है परंतु भगवान द्वारा बनाई गयी इंसान रूपी मूर्ति से घृणा करने लगते है। हर प्राणि को ईश्वर का अंश मान कर उसका सम्मान करना चाहिए ना कि तिरस्कार करना चाहिए। इस अवसर पर धर्मसंघ पीठाधीश्वर स्वामी शंकरदेव चैतन्य ब्रह्मचारी जी महाराज ने भी देश के विभिन्न स्थानों से आये श्रद्धालुओं को प्रवचन दिया।
पूर्व कथा का शुभारंभ पण्डित जगजीतन पाण्डेय द्वारा व्यासपीठ के पूजन से हुआ। कथा में मुख्य रुप से ब्रजवल्लभ शर्मा, राम प्रसाद पारिख, राम स्वरूप मालानी, राजमंगल पाण्डेय, सुमित सराफ आदि मौजूद रहे।
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