बुद्ध- दर्शन में चार ब्रम्ह विहारों की कल्पना की गई है-कुलपति प्रो सामतेन

varanasi मैत्री, करुणा, मुदिता और उपेक्षा --ये चार ब्रम्ह विहार (भवन) हैं। ये विहार यानि लोकभवन हैं। उन उन भावनाओं की प्राप्ति करने वाले श्रमण इन विहारों में वास करते हैं। ब्रह्म सह्म्पति,इस भवन के स्वामी हैं ऐसी कल्पना की गयी है।

बुद्ध- दर्शन में चार ब्रम्ह विहारों की कल्पना की गई है-कुलपति प्रो सामतेन
बुद्ध- दर्शन में चार ब्रम्ह विहारों की कल्पना की गई है-कुलपति प्रो सामतेन


बुद्ध- दर्शन में चार ब्रम्ह विहारों की कल्पना की गई है-कुलपति प्रो सामतेन

 मैत्री,करुणा,मुदिता,उपेक्षा ये मानवीय मूल्यों के सहजीवन की भावनाएँ हैं-- कुलपति प्रो हरेराम त्रिपाठी

मुदिता-भावना का विशेष कार्य अरति,अपृति का नाश करना है--प्रो लालजी

बुद्ध चरित्र और तत्वज्ञान में ब्रम्ह और उनके भवन का बार बार उल्लेख आता है तब अध्येता पशोपेश में पड़ जाते हैं। ऐसा होना स्वाभाविक है। लेकिन इसका सही विश्लेषण होने पर इस दुविधा का शमन होता है।
बुद्ध- दर्शन में चार ब्रम्ह विहारों की कल्पना की गई है।
varanasi मैत्री, करुणा, मुदिता और उपेक्षा --ये चार ब्रम्ह विहार (भवन) हैं। ये विहार यानि लोकभवन हैं। उन उन भावनाओं की प्राप्ति करने वाले श्रमण इन विहारों में वास करते हैं। ब्रह्म सह्म्पति,इस भवन के स्वामी हैं ऐसी कल्पना की गयी है।
उक्त विचार सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय वाराणसी के श्रमण विद्या संकाय के द्वारा आज अपरंह 1:00 बजे योगसाधना केन्द्र मे आयोजित बौद्ध जयंती/पूर्णिमा  के उपलक्ष्य मे "बौद्ध धर्म मे मैत्री एवं मुदिता" विषय पर  केन्द्रीय तिब्बती अध्ययनविश्वविद्यालय,सारनाथ,वाराणसी के कुलपति प्रो गे•शे• नवांग सामतेन ने बतौर मुख्य अतिथि व्यक्त किया।उन्होने कहा कि समस्त प्राणी दुख से मुक्त हों ऐसी भावना से जुड्ना चाहिये इसमे सभी जीव जन्तु व समाज के प्रति ऐसी दया करुणा और मुदिता की भावना समाहित करना होगा।


पाली एवं बौद्ध अध्ययन विभाग ,बीएचयू के पूर्व विभागाध्यक्ष एवं आचार्य प्रो लालजी "श्रावक" ने बतौर मुख्य वक्ता कहा कि बौदू धर्म दर्शन मैत्री भाव भावना का विशेष कार्य द्वेष (व्यापद)का प्रतिपात करना है।करुणा भावना का विशेष कार्य विहिन्सा का प्रतिघात करना है।मुदिता-भावना का विशेष कार्य अरति,अपृति का नाश करना है और उपेक्षा भावना का विशेष कार्य राग का प्रतिघात करना है।प्रत्येक भावना के दो शत्रु हैं-01-समीपवर्ती,02-दूरवर्ती मैत्री भावना का समीपवर्ती शत्रु राग है।
प्रो लालजी ने कहा कि राग की मैत्री से समानता है।व्यापाद उसका दूरवर्ती शत्रु है।दोनो एक दूसरे के प्रतिकूल है।कोई व्यक्ति उन्नति करता है तो हम उसके प्रति सद्भाव रखकर प्रसन्न होते है वह मुदिता होती है।यह वैश्वीक स्तर तक होता है।
अध्यक्षीय उद्बोधन--
विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो हरेराम त्रिपाठी ने अध्यक्षता करते हुए कहा कि मैत्री,करुणा,मुदिता,उपेक्षा ये मानवीय मूल्यों के सहजीवन की भावनाएँ हैं।।इन भावनाओं के विहार भौतिक न होकर मानसिक हैं।ये चार  ब्रह्मलोक और उनके प्रमुख ब्रह्म,तथागत के मन के द्वंद के प्रतीक हैं।बैशाख पूर्णिमा को ज्ञान प्राप्ति के पश्चात तथागत के मन में विषाद योग उत्पन्न हुआ।


कुलपति प्रो त्रिपाठी ने कहा कि ऋग्वेद में वर्णित हमारी संस्कृति की पहचान मैत्री एवं मुदिता की सार्थक पहचान देती है।भारतीय संस्कृति मे इसका व्यापक स्वरुप है।भगवान बुद्ध ने सदैव मैत्री -मुदिता के भाव को जागृत करते हुये सभी जनों को अपने अन्तर्भाव से जोड़ लिये।
बौद्ध जयंती समारोह के संयोजक श्रमण विद्या संकाय के अध्यक्ष प्रो रमेश प्रसाद ने विषय परिवर्तन करते हुये कहा कि अहंकार को त्यागकर मैत्री व मुदिता के भाव मे समाहित होने पर ही हम सभी के सहयोगी हो सकते हैं।
स्वागत भाषण प्रो हरिशंकर पान्डेय,


संचालन एवं धन्यवाद डॉ रविशंकर पान्डेय ने किया।
बौद्ध जयंती समारोह के प्रारम्भ में पाली ,पौराणिक, वैदिक,जैन मंगलाचरण,मंचासीन अतिथियों के द्वारा दीप प्रज्जवलन एवं माँ  सरस्वती,महात्मा बुद्ध के चित्र पर माल्यार्पण किया गया।


उक्त जयंती समारोह मे कुलसचिव डॉ ओमप्रकाश,प्रो रामकिशोर त्रिपाठी,प्रो रामपूजन पान्डेय,प्रो हरिशंकर पान्डेय,प्रो हरिप्रसाद अधिकारी,प्रो सुधाकर पान्डेय,प्रो जितेन्द्र कुमार,प्रो महेंद्र पान्डेय,प्रो राजनाथ ,प्रो अमित शुक्ल,प्रो शैलेश मिश्र,डॉ विजय पान्डेय,डॉ दिनेश गर्ग,डॉ रेणु द्विवेदी,डॉ मुन्नी जैन आदि उपस्थित थे।
प्रेषक-

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