हरित सफर की पहल के अंतर्गत सतत शहरी गतिशीलता समूह (सस्टैनबल अर्बन मोबिलिटी कलेक्टिव) की शुरुआत

हरित सफर की पहल के अंतर्गत सतत शहरी गतिशीलता समूह (सस्टैनबल अर्बन मोबिलिटी कलेक्टिव) की शुरुआत 

वाराणसी, 19 नवंबर 2024: हरित सफ़र उत्तर भारतीय शहरों में टिकाऊ गतिशीलता को बढ़ावा देने के उद्देश्य से कार्यरत एक अभियान है, जो क्लाइमेट एजेंडा के द्वारा उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड और मध्य प्रदेश में संचालित है. इसे शहरों और उनके आस-पास के लोगों तथा उनके व्यवसायों की गतिशीलता की ज़रूरतों को कार्बन मुक्त परिवहन साधनों द्वारा पूरा करने के लिए तैयार किया गया है ताकि,  जीवनस्तर में बेहतर सुधार तथा विकास सुनिश्चित की जा सके। इसी कड़ी में उत्तर प्रदेश, बिहार और झारखंड में सार्वजनिक परिवहन प्रणाली के विद्युतीकरण को बढ़ावा देने के लिए 'सतत शहरी गतिशीलता समूह -SUMC (सस्टैनबल अर्बन मोबिलिटी कलेक्टिव)' का शुभारंभ किया गया है। इस पहल का उद्देश्य इन तीनों राज्यों में माँग सृजन और आपूर्ति में सामंजस्य बैठाते हुए टिकाऊ और जलवायु केंद्रीत सार्वजनिक परिवहन प्रणाली विकसित करना है। इसे जन-भागीदारीपूर्ण और एकीकृत तरीके से विकसित किया गया है शहरों में कार्बोन उत्सर्जन को कम किया जा सके. 
'सतत शहरी गतिशीलता समूह -एसयूएमसी' की घोषणा वाराणसी में 'द क्लाइमेट एजेंडा' द्वारा आयोजित स्वच्छ और समावेशी शहरी परिवहन प्रणालियों पर पहले क्षेत्रीय सम्मेलन में की गई। 'द क्लाइमेट एजेंडा', उत्तर भारत का एक पर्यावरण संबंधी संगठन है।  
क्लाइमेट एजेंडा ने अपनी प्रमुख पहल 'हरित सफ़र' के माध्यम से कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन को कम करने के लिए "कार्बन मुक्त शहरी गतिशीलता: एक सतत और समावेशी भविष्य के लिए सहयोग" पर एक क्षेत्रीय सम्मेलन की मेजबानी की और वाराणसी में "सतत शहरी गतिशीलता समूह -एसयूएमसी" की घोषणा की। 
जलवायु संकट, ऊर्जा की बढ़ती माँग और लगातार ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन धरती के लिए एक बड़ा खतरा बनते जा रहे हैं। इस सब चुनौतियों को देखते हुए हरित ऊर्जा को अपनाना अब केवल तर्कसंगत नहीं है बल्कि अनिवार्य भी हो गया है। हाल की जलवायु आपदाएँ- चक्रवात और बर्फ़ीले तूफान से लेकर अधिक गर्मी पड़ना, धरती की सतह का बढ़ता तापमान आदि घटनाएँ हमें बड़े संकट का इशारा करती हैं।  
आईएसए (ISA) की रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2023 में वैश्विक ग्रीनहाउस गैस (GHG) उत्सर्जन 39.3 बिलियन टन से अधिक हुआ। इसमें अकेले कार्बन डाइऑक्साइड का 88 प्रतिशत हिस्सा था। यह वैश्विक तापमान में 1.5 डिग्री सेल्सियस वृद्धि का कारण है। और अगर यह ऐसे ही चलता रहा तो वर्ष 2050 तक तापमान में खतरनाक 2.4 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि हो सकती है। ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन का स्तर ऐसे ही बढ़ता रहा तो इसके दूरगामी तथा खतरनाक परिणाम होंगे, जो हमारी धरती के जीवन को संकट में डाल सकते हैं। 
जलवायु संकट का जीवन के साथ-साथ आर्थिक प्रभाव भी उतना ही गंभीर है। आईएसए  (ISA) के अनुसार,  पिछले एक दशक में जलवायु परिवर्तन के चलते वैश्विक आर्थिक नुकसान आश्चर्यजनक रूप से 2.5 ट्रिलियन डॉलर तक पहुँच गया है। और इसमें हर साल इजाफा ही हो रहा है। 
भारत सरकार जलवायु परिवर्तन के खतरों के लेकर सजग है और लगातार इस ओर काम कर रही है। शहरों को कार्बन मुक्त करने के भारत के जो प्रयास हैं, वे निश्चित रूप से वैश्विक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन पर नियंत्रण करने में सक्षम हैं। विशेषकर परिवहन क्षेत्र में तो भारत में क्रांतिकारी बदलाव हो रहे हैं और परिवहन सेक्टर में ही सबसे अधिक कार्बन उत्सर्जन होता है। इसलिए भारत में इस सेक्टर में सबसे अधिक कार्य किए जा रहे हैं। क्लाइमेट एक्शन ट्रैकर की 2020 की रिपोर्ट - "भारतीय परिवहन क्षेत्र को डीकार्बोनाइजिंग:रास्ते और नीतियां" इस पर विस्तार से प्रकाश डालती है।
भारत के परिवहन क्षेत्र की देश के कार्बन डाईऑक्साइड उत्सर्जन में 13.5 प्रतिशत की भागीदारी है। इसमें भी सड़क परिवहन सबसे आगे है। परिवहन क्षेत्र की ऊर्जा खपत 90 फीसदी है। इतनी अधिक ऊर्जा खपत वाले क्षेत्र में  टिकाऊ शहरी गतिशीलता (SUM) पहल के माध्यम से क्रांतिकारी बदलाव आ सकते हैं। इस पहले के माध्यम से कार्बन उत्सर्जन में परिवहन क्षेत्र की हिस्सेदारी को कम करके भारत वैश्विक जलवायु एक्शन (global climate action) में एक अग्रणी भूमिका निभा सकता है।
परिवहन सेक्टर में अभी जिस प्रकार के इंजनों का इस्तेमाल हो रहा है उनसे कार्बन उत्सर्जन बड़ी मात्रा में होता है। इस पर विचार करते हुए केंद्र और राज्य सरकारें ई-वाहनों को बढ़ावा दे रही हैं।  शहरों और परिवहन सिस्टम को कार्बन मुक्त करने के लिए बड़े पैमाने पर प्रयास किए जा रहे हैं। 
दुनिया की सबसे अधिक आबादी वाले देश में परिवहन क्षेत्र को बदलने में भारत के कार्यों और योजनाओं का वैश्विक प्रभाव है। कार्बन उत्सर्जन को कम करने में भारत ने जिस प्रकार मानदंड स्थापित किए हैं, उससे पूरी दुनिया की नजर भारत पर है। फिर भी इस क्षेत्र में अभी बहुत काम किए जाने बाकी हैं, विशेषकर उत्तर प्रदेश, बिहार और झारखंड जैसे घनी आबादी वाले राज्यों में। इसके लिए इन राज्यों में स्थायी शहरी गतिशीलता को बढ़ावा दिया जा रहा है। कार्बन मुक्त गतिशीलता प्राप्त करने के लिए इन चुनौतियों का समाधान करना महत्वपूर्ण है।
कार्बन उत्सर्जन को कम करने की समय की जरूरत को पहचानते हुए पर्यावरण के क्षेत्र में लंबे समय सतत और ठोस कार्य करने वाले सामाजिक संगठन- द क्लाइमेट एजेंडा ने स्वच्छ और समावेशी शहरी परिवहन प्रणालियों पर पहले क्षेत्रीय सम्मेलन की मेजबानी की।
 इस कार्यक्रम में परिवहन सेक्टर की स्थानीय चुनौतियों पर प्रकाश डाला गया। वास्तविकताओं पर चर्चा की गई और भारत के सबसे अधिक आबादी वाले क्षेत्रों में टिकाऊ परिवहन प्रणालियों को चलाने के लिए न्यायसंगत समाधानों की खोज की गई। सम्मेलन का उद्देश्य परिवर्तनकारी शहरी गतिशीलता की दिशा में एक मार्ग तैयार करना था।
सस्टेनेबल अर्बन मोबिलिटी कलेक्टिव यानी सामूहिक सतत शहरी गतिशीलता समूह (एसयूएमसी) की शुरूआत ने बनारस में गंगा की लहरों के निकट शहरी गतिशीलता चुनौतियों पर स्थानीय सहयोग को बढ़ावा देने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम उठाया गया। वायु प्रदूषण और ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन के भारी बोझ वाले इस क्षेत्र को तत्काल बड़ी कार्रवाई की आवश्यकता है।
उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड और मध्य प्रदेश के हितधारकों को एक मंच पर लाने के उद्देश्य से की गई घोषणा को पहले क्षेत्रीय सम्मेलन 'डीकार्बोनाइजिंग अर्बन मोबिलिटी:एक सतत और समावेशी भविष्य के लिए सहयोग' को काफी अच्छी प्रतिक्रियाएँ मिली हैं। द क्लाइमेट एजेंडा द्वारा आयोजित इस कार्यक्रम ने गतिशीलता के मुद्दों पर चर्चा करने और एक स्वच्छ, अधिक समावेशी भविष्य की दिशा में रास्ते तलाशने के लिए विभिन्न सुझावों को एक साथ लाने के काम किया गया है। 
यहाँ हुए मंथन से लोगों को यह बात आसानी से समझ में आ गई कि अगर परिवहन क्षेत्र में बड़ा बदलाव किया जाए तो निश्चित ही हम जलवायु परिवर्तन के खतरों की बड़ी लड़ाई जीत सकते हैं। और यह सब इलेक्ट्रिक यातायात प्रणाली से ही संभव है। 
सस्टेनेबल अर्बन मोबिलिटी कलेक्टिव (एसयूएमसी) के शुभारंभ पर द क्लाइमेट एजेंडा की संस्थापक-निदेशक एकता शेखर ने कहा कि उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड और मध्य प्रदेश में भारत के शून्य कार्बन उत्सर्जन और राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम के लक्ष्य को पूरा करने की अपार क्षमता है। इन राज्यों के शहर एक महत्वपूर्ण मोड़ पर खड़े हैं, जहाँ स्वच्छ शहरी गतिशीलता समाधान अपनाने से शहरों में होने वाले कार्बन उत्सर्जन पर काफी हद तक अंकुश लगाया जा सकता है। 'एसयूएमसी' पहल सार्वजनिक परिवहन के विद्युतीकरण को बढ़ावा देने, इससे जुड़े क्षेत्रों में तालमेल और स्वच्छ व अधिक टिकाऊ शहरी गतिशीलता समाधानों की ओर बदलाव की सुविधा प्रदान करने में सहायक होगी।
एकता शेखर ने कहा कि राज्य और केंद्र सरकारें इस क्षेत्र में प्रयास कर रही हैं,  इस दिशा में ठोस परिणाम के लिए स्थान विशेष की मौजूदा स्थिति के आधार पर निर्णय लेना ही पर्याप्त नहीं है, बल्कि इनके साथ-साथ परिवहन के विभिन्न तरीकों को एकीकृत करना और परिवहन क्षेत्र के बुनियादी ढांचे में समावेशिता सिद्धांतों को शामिल करना शहरी गतिशीलता को असरदार ढंग से लागू करने के लिए महत्वपूर्ण है।
द क्लाइमेट एजेंडा की प्रमुख एकता शेखर ने पूरे मिशन पर प्रकाश डालते हुए कहा कि सार्वजनिक परिवहन प्रणाली और इससे जुड़े क्षेत्रों की जरूरतों तथा अंतर को पहचानते हुए 'सस्टेनेबल अर्बन मोबिलिटी कलेक्टिव' की स्थापना एक स्पष्ट मिशन के साथ की गई थी। उन्होंने कहा कि उनका मकसद पूरे क्षेत्र में इलेक्ट्रिक वाहन (ईवी) अपनाने में तेजी लाने में सरकारों का समर्थन करना है। इस पहल का उद्देश्य शहरी परिवहन में क्रांति लाना है, जिससे एक टिकाऊ और समावेशी भविष्य का मार्ग प्रशस्त हो सके। 
उन्होंने कहा कि वाराणसी में एसयूएमसी का शुभारंभ इस दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। उन्होंने कहा कि एसयूएमसी जैसा सिस्टम इस क्षेत्र में बढ़ते प्रदूषण के संकट के समाधान के लिए प्रभावी साबित होगा।
एकता शेखर ने कहा कि सराकार के स्तर पर काम तो हो रहे हैं पर ज़मीनी स्तर पर मांग और नेट जीरो टारगेट के बरक्स विद्युत् चलित बसों को सार्वजनिक परिवहन मे शामिल किये जाने की गति को तेज करने की जरुरत है। 'एसयूएमसी' इसी उद्देश्य से बनाया गया है।
आईआईटी, बनारस के सहायक प्रोफेसर डॉ.अभिषेक मुद्गल ने कहा कि हरित गतिशीलता प्राप्त करने का आधार सड़क का इस्तेमाल करने वालों पर निर्भर है। सुरक्षित, पर्यावरण-अनुकूल और टिकाऊ परिवहन सिस्टम अपनाने से कार्बन उत्सर्जन कम करने के लक्ष्य को हासिल किया जा सकता है। इस विषय पर स्थानीय स्तर पर कार्य करते हुए विश्वस्तर पर सोचना जरूरी है, क्योंकि स्थाई परिवहन आंदोलन को चलाने की जिम्मेदारी जनभागीदारी पर निर्भर है। उन्होंने कहा कि हालांकि, इस समस्या का स्थायी समाधान हैं, लेकिन उनकी सफलता लोगों की प्रतिबद्धता पर निर्भर करती है। 


डॉ. अभिषेक मुद्गल ने कहा कि वायु प्रदूषण में कार्बन डाइऑक्साइड का प्रमुख योगदान है और इसके उत्सर्जन पर अंकुश लगाने के लिए वाहनों का सही तरीके से इस्तेमाल बहुत जरूरी है। पुराने वाहन का इस्तेमाल, लापरवाही से गाड़ी चलाना और ट्रैफिक जाम जैसे कारक प्रदूषण की समस्याओं को बढ़ा देते हैं। जिम्मेदार ड्राइविंग आदतों को अपनाकर और टिकाऊपन को प्राथमिकता देकर, सड़क सड़क का इस्तेमाल करने वाले लोग पर्यावरणीय प्रभाव को कम करने और स्वच्छ, हरित भविष्य को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।


वर्ल्ड रिसोर्सेज इंस्टीट्यूट (WRI) में ट्रांसपोर्ट विभाग के कार्यक्रम प्रमुख  चिंतन दफ्तरदार ने कहा कि वाहनों से निकलने वाले प्रदूषण समस्या की जड़ यह है कि हम वाहनों का उपयोग कैसे करते हैं। जब कम लोग सड़कों पर बड़े वाहन स्थान घेरते हैं, तो प्रदूषण काफी बढ़ जाता है।  इसके लिए सार्वजनिक परिवहन का विकल्प चुनना महत्वपूर्ण है, क्योंकि इसका प्रति व्यक्ति उत्सर्जन निजी वाहनों की तुलना में काफी कम है। इसलिए, वाहनों का सही इस्तेमाल वायु प्रदूषण से निपटने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।

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